कल्यान भट्ट, खमालिया के १३१ घार्ता प्रसंग-२ और एक समै श्रीगोवर्द्धननाथजी आप के नेग में कसेंडी दोइ दूध ओछो हतो। तव दूधघरीया ने अपुने मन में विचार कियो, जो - आज तो दूध थोरो है। तो काल्हि कसेंडी दोइ दूध अधिक करूंगो । ता पाछे श्रीगोवर्द्धननाथजी आप ता रात्रि को सुवर्ण को कटोरा लैकै बरस दस के लरिका को रूप धारन करि आन्योर में आए । सो कल्यान भट के घर आय कै कल्यान भट की बेटी देवका सों श्रीगोवर्द्धननाथजी आप पूछे, जो-देवका ! तेरे यहां दूध है ? तव देवका ने वा लरिका सों कह्यो, जो- हां हां, बोहोत दूध है। जितनो चहिए तितनो है। तब वा-लरिका ने देवका सों कह्यो, जो-तू दूध को मोल कहे। तो मैं लेऊ । तव देवका ने तो मोल की नाहीं करी। तव श्रीगोवर्द्धननाथजी आपने साढ़े तीन पैसा सेर दूध मांग्यो । तब देवका ने तो नाहीं करी। पाछै श्रीगोवर्द्धननाथजी आपने चारि पैसा कौ सेर दुध मांग्यो । सो ऐसे करत साढ़े चार पैसा सेर ठहरायो । फिरि कै श्रीगोवर्द्धननाथजी आपने कटोरा गहने धरयो। तव देवका ने कटोरा में दूध राख्यो । ता पाछे अंतः- करन मांही खेद उपज्यो । तव देवका ने अपने घर में तें मिठाई ल्याय के कटोरा में दूध धरि कै दियो। तव श्रीगोवर्द्धननाथजी आप सब दूध आरोगे । कटोरा उहांई धरि आए। और श्री- गोवर्द्धननाथजी आप श्रीमुख सों देवका सों कहे, जो-प्रातःकाल पैसा दै के कटोरा ले जाउंगो। ता पाछे वा वाई देवका ने वा कटोरा को धोय कै गवाखे में धरि दियो। ता पाछे दूसरे दिन सवारे प्रातःकाल श्रीगुसांईजी स्नान करि कै श्रीगिरिराज पर्वत
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