जन-भगवानदास.दो भाई. गौरवा क्षत्री
- ता पाठे श्रीगुसांईजी आप भोजन कों पधारे । सो भोजन
करि आचमन करि वीरा आरोगि के ता पाऊँ जन-भगवान- दास को महाप्रसाद की पातरि धेरै । और श्रीमुख तें कहे, जो - तुम श्रीनाथजी को महाप्रसाद यहां लेऊ। तंव जन- भगवानदास दोऊ भाईन ने महाप्रसाद लियो। ता पाठे श्री- गुसांईजी आप छिनक विश्राम करि के जागे । सो स्नान करि कै श्रीगिरिराज पर्वत के ऊपर पधारे । सो उत्थापन तें सेन पर्यंत सब सेवा तें पहोंचि के श्रीनाथजी के मंदिर ते नीचे पधारे । ता. पाछे श्रीगुसांईजी आप कथा कहन लागे। सो इन दोऊ भाईन ने श्रीमुख ते कथा सुनी । सो ऐसे कितेक दिन ताई श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये। ता पाठे श्रीगुसांईजी आप गोकुल पधारे। तव जन-भगवानदास दोऊ भाई साथ आए। सो श्रीनवनीतप्रियजी आदि सातों स्वरूपन के दरसन किये । तब ऐसें करत जन्माष्टमी को उत्सव आयो । ताही समै जन-भगवानदास ने यह पद गायो । सो प्रद राग : सारं ग्वाल वधाई मांगन आए। गोपी-बाल गोरस सकल लिये सवहिन के सिर नॉए । अव ये गर्व गिनत न काहू करि पाए मन भाए । जहां नंद वैठे नंदी-मुख तहां गहन को थाए । बरन-बरन पट पाए उठाह सों आनंद मंगल गाए। 'जन-भगवान जसोदा नंदन वलि बलि मंगल गाए । सो यह बघाई जन-भगवानदास ने गाई । सो मुनि के श्रीगुसांईजी बोहोत प्रसन्न भए । ता पार्छ श्रीगुसांईजी को जन्म-