पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१२३

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११२ दोसो वावन वैष्णवन की वार्ता अपने घर आयो । पाछे श्रीठाकुरजीकी सेवा स्त्री-पुरुप भली भांति सों करते। पाछे वैष्णव ने उह ठगन सों कह्यो, जो-अव तुम अपने घर जाऊ । तव ठगनने कही, जो-अवही हम घर न जाँइगे। पाठें घर में जाँइ के उनकी संगति करि हमारी बुद्धि भ्रष्ट होंई जायगी। तातें याही गाममें कछक दिन जीविका कौ जतन करि कै रहेंगे। तुम्हारे संग तें हमारो उद्धार होइगो। पाठे वे ठग वा गाम में एक सेठ के घर चाकर रहे । सो वा वैष्णव के संग ते वे ठग भले वेष्णव भए। सो वे स्त्री-पुरुष श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हे । ताते इनकी वार्ता कहां तांई कहिए। वार्ता ॥ १०५॥ अव श्रीगुसांईजी को सेवक एक व्रजवासी, सनाढय ब्राह्मन, आन्योर में रहती, जाकों श्रीगुसाईजी ने परे कयो, तिनको वार्ता को भाष कहत हैं- भावप्रकाश- ये तामस भक्त हैं। लीला में इन को नाम ' रेली' है। सो रेली गोप श्रीठाकुरजी को अंतरंग सखा है। ये 'सुसीला' ते प्रगटयो है, तातें उनके भावरूप हैं। ये आन्यौर में एक सनाढ्य ब्राह्मन के जन्म्यो । सो वाकौ पिता श्री- गोवर्द्धननाथजी की गाँइन को ग्वाल हतो। वह श्रीगुसांईजी कौ सेवक हुतो । सो वाने अपने वेटा को हू श्रीगुसांईजी कौ सेवक कियो । सो यह लरिका निपट मुग्ध हतो । सो श्रीगुसांईजी इनकों मुग्ध जानि अपने खेल में राखे । सो श्री- गुसांईजी सों या लरिका सों बोहोत एकताचारी भई। ऐसें करत ये वरस वीस को भयो । तब याकै माता-पिता मरे । ता पाछे यह लरिका श्रीगुसांईजी के पास रहन लाग्यो । याकौ ब्याह तो भयो नाहीं। घर में कोऊ हतो नाहीं। सो श्री- गुसांईजी वाकों गरीव जानि एक पेटिया करि दीये । सो वह नित्य एक पेटिया लेतो। तामें अपनो निर्वाह करतो। वार्ता प्रसग-१ सो एक दिन एक वैष्णव श्रीगुसांईजी के दरसन कों आयो । सो वाने श्रीगुसांईजी सों बिनती कीनी, जो-राज!