पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१०६

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दो भाई सांचोरा ब्राह्मण, जिननें वैष्णव को समाधान कियो को धर्म नाहीं है । और सगाई-संबंधता को कछ रहेगा नाहीं । तव वडो भाई अपने मन में विचारि करि छोटे भाई सों कह्यो, जो- अपने पाछे अपने वनिया की हाट है। सो बनिया तो काहू गाम (कों) गयो है । सो जाँइ के तारी तोरि के जो सामग्री चहिए सो ले आइये । पाछे वह आवेगो तब हम दाम दे देइंगे। तव छोटे भाई ने बड़े भाई सों कह्यो. जो - भली वात है । पाछे जाँइ के तारौ तोरयो । सो किंवाड़ खोलि के जितनो सोधो सामग्री चहिए तितनो लीनो। पाठे गांठि बांधि के छोटे भाई ने बड़े भाई को दीनी और कह्यो. जो - तुम चलो, हों किवाड़ मारि कै आवत हूं। तव बड़ो भाई अपने घर आयो। भावप्रकाश-यहां यह संदेह होई, जो-वैष्णव के समाधान के ताई एसी लोक विरुद्ध कार्य क्यों किये ? तहां कहत हैं. जो भगवदीय वैष्णवन को स्वरूप महा अलौकिक है। साक्षात् भगवान को ही स्वरूप है । नाने घर आए भगवदीयन को भूखे कैसे रहन दे ? यह वैष्णव को धर्म नाहीं। ताने उन दोउनने भगवद्धर्म आगे लोक वेदकों तुन्छ करि जाने । यह भाव जाननो । इतने में कोतवाल को मनुष्य आयो। तब छोटे भाई कों कोतवाल के मनुष्य ने पकरयो । तब वोतग पे ले गए। तब कोतवाल सों सब समाचार कहें। ता ममै गाम को राजा तहां बैठयो हतो । तब उह ब्राह्मन को परोसी बोतरा ऊपर लिग्बत हतो । सो वह महा कुटिल हतो। सो वाके और इन दोऊ भाईन कों परस्पर दूपभाव हतो। मो वानं याको देवि के कह्यो. जो- साहिबज़ ! ये बंई चोर हैं। जो-सब गाम में चोरी होत है मो नव यही करत हैं । जो - इन की तयार में होन हैं । और इनने मनुष्य बहोत मारे हैं । मोपली ऐसी