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दो बहनें

करने की जगह नहीं है! अतएव ऊर्मि को बुलाकर ख़ूब डाँट बताती। उस -डाँट-फटकार से कुछ निश्चित फ़ायदा हो सकता था, लेकिन पत्नी के कद्ध कंठस्वर को सुनकर शशांक स्वयं आकर दरवाज़े के बाहर खड़ा हो जाता और आँख मिचकाकर ऊर्मि को आश्वासन देता। ताश का पैक दिखाकर इशारा करता, जिसका भाव यह होता कि चलो आओ, आफिस में बैठकर तुम्हें पोकर का खेल सिखाऊंगा। यह ताश खेलने का समय बिल्कुल नहीं था और न खेलने की बात मन में लाने लायक़ समय या अभिप्राय ही उसका था। लेकिन बड़ी बहन की कड़ी फटकार से ऊर्मि के मन में जो पीड़ा होती वह ऊर्मि की अपेक्षा उसे ही ज़्यादा लगती। वह खुद ही ऊर्मि को अनुनय करके या थोड़ा सा डाँटकर भी कार्यक्षेत्र से हटा देता किन्तु शर्मिला इसी बात को लेकर ऊर्मि को डाँटेगी, यह बात उसके लिये दुःसह थी।

शर्मिला शशांक को बुलाकर कहती, "जिस बात पर भी वह मचलेगी उसी बात पर तुम ध्यान देने लगो तो चलेगा कैसे। इससे वक्त-बे-वक्त तुम्हारे काम का नुक़सान जो होता है।"

शशांक कहता, "आहा, बेचारी बची है, यहाँ कोई उसका

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