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दो बहनें

फेरता और पूछता, 'कैसा लग रहा है?' शर्मिला उसी समय जवाब देती, "तुम बेकार चिंता मत करो; मैं अच्छी ही हूँ।" यह बात विश्वास करने योग्य नहीं होती, लेकिन फिर भी शशांक विश्वास करके शीघ्र ही छुट्टी पा जाता क्योंकि विश्वास करने की उसकी इच्छा प्रबल थी।

शशांक ने कहा, "ढेंकानल के राजा का एक बहुत बड़ा काम हाथ आया है। प्लैन के बारे में दीवान से बात करनी होगी। जितनी जल्दी हो सकेगा लौट आऊँगा, डाक्टर के आने से पहले।"

शर्मिला ने अनुयोग के साथ कहा, "मेरे सिर की क़सम, जल्दी करके काम ख़राब न कर देना। मैं जानती हूँ, तुम्हें उनके देश तक जाने की ज़रूरत है। ज़रूर जाना, नहीं जाओगे तो मैं अच्छी नहीं रहूँगी। मेरी देखरेख करनेवाले बहुत हैं।"

शशांक के मन में विराट् ऐश्चर्य खड़ा करने का संकल्प दिनरात जगा रहता। उसका आकर्षण ऐश्वर्य के प्रति नहीं बल्कि उसके बड़प्पन को ओर था। कुछ बड़ी चीज़ गढ़ सकना ही पुरुष की ज़िम्मेवारी है। रुपये-पैसे को तभी तक तुच्छ समझकर अवज्ञा की जा सकती है जब तक उससे केवल दिन कटते हैं। जब उसकी

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