यह पृष्ठ प्रमाणित है।
दो बहनें


देकर ही कहता आ रहा था कि ग़लती हो रही है। उसने ख़ुद बीमारी का एक निदान किया था और किसी सूखी जगह में आबहवा बदलने का परामर्श दिया था, किन्तु राजाराम के मन में अपने पैतृक युग का संस्कार अटल था। वे जानते थे कि यमराज के साथ दुःसाध्य लड़ाई छिड़ जाने पर उसका उपयुक्त प्रतिद्वन्द्वी एकमात्र अंग्रेज़ डाक्टर ही हो सकता है। किन्तु इस मामले में नीरद पर उनके स्नेह और श्रद्धा की मात्रा ज़रूरत से ज्यादा बढ़ गई। उनकी छोटी कन्या ऊर्मि के मन में अचानक यह बात उदय हुई कि इस आदमी की प्रतिमा असामान्य है। पिता से बोली, देखा बाबू जी, थोड़ी उम्र में भी अपने ऊपर कितना विश्वास है और इतने बड़े नामवर विलायती डाक्टर के विरुद्ध अपने मत को निःसंशय घोषित कर सकने का कैसा असंकुचित साहस है!

पिता ने कहा, "डाक्टरी विद्या केवल शास्त्र पढ़ने से नहीं आती। किसी-किसी में उसका दुर्लभ दैवसंस्कार पाया जाता है। नीरद में ऐसा ही देख रहा हूँ।"

इनकी भक्ति एक छोटे प्रमाण से शुरू हुई थी—शोक का आघात पाकर और परिताप की वेदना लेकर। इसके

२९