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दो बहनें

गई। लड़के को अध्यापक लोग दीप्तिमान कहा करते थे---अर्थात् जिसे अंग्रेजी़ में ब्रीलियेन्ट कहते हैं। चेहरा पीछे फिरकर देखने लायक़ था। ऐसा विषय नहीं था, जिसमें उसकी विद्या परीक्षामापक यंत्र के सबसे ऊँचेवाले मार्के तक नहीं पहुँची हो। इसके सिवा ऐसे लक्षण काफ़ी प्रबल थे कि व्यायाम के उत्कर्ष में वह बाप के नाम की लाज बचाएगा। कहना व्यर्थ है कि उसके चारों और उत्कंठित कन्या-मंडली की कक्ष-परिक्रमा तेजी से चल रही थी, किन्तु तब भी उसका मन विवाह की और उदासीन ही शा। तात्कालिक लक्ष्य यूरोपीय विश्वविद्यालय की उपाधि प्राप्त करना ही था। इसी उद्देश्य को सामने रखकर उसने फ्रेंच और जर्मन सीखना शुरू किया था।

और कुछ करने को न होने से, अनावश्यक होने पर भी, जब उसने कानून पढ़ना शुरू किया उसी समय हेमन्त के अन्त्र (आँत) में अथवा शरीर के किसी और यन्त्र में न जाने कौन-सा ऐसा विकार उत्पन्न हुआ कि उसका पता डाक्टरों को चल ही नहीं सका। वह गोपनचारी रोग उस मज़बूत शरीर में इस प्रकार घर कर गया मानो किसी प्रबल दुर्ग का आश्रय लिए हो उसे

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