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दो बहनें

हो जायगी। चाहे जितनी भी ज़्यादती करो, देवता को कोई एतराज़ नहीं होगा लेकिन मनुष्य तो कमज़ोर जीव है।'

शर्मिला ने कहा, 'हाय हाय, एक बार काकाजी के साथ जब मैं हरिद्वार गई थी उस समय तुम्हारी क्या दशा हो गई थी, याद है?'

दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई थी, यह बात शशांक ने ही ख़ूब नमक-मिर्च मिलाकर स्त्री को सुनाई थी। वह जानता था कि इस अत्युक्ति से शर्मिला को जितना अनुताप होगा उतना ही आनंद भी होगा। उस दिन के अमितभाषण का प्रतिवाद भला कौन मुँह लेकर करे! चुपचाप मान जाना पड़ा, सिर्फ़ इतना ही नहीं, उसी दिन सुबह उसे ज़रा सर्दी-सी लगी जान पड़ी, शर्मिला को इस कल्पना के अनुसार उसे दस ग्रेन कुनैन खानी पड़ी, ऊपर से तुलसी के पत्तों की रसवाली चाय भी पीनी पड़ी। आपत्ति करने का उपाय नहीं था क्योंकि एक बार ऐसी ही अवस्था में आपत्ति करके उसने कुनैन नहीं खाई थी और बुखार भोगना पड़ा था। यह घटना शशांक के इतिहास में अमिट अक्षरों में लिख गई है।

घर में आरोग्य और आराम के लिये जिस प्रकार शर्मिला की ऐसी सस्नेह व्यग्रता थी, बाहर शशांक की