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दो बहनें

इधर काम से हाथ खींचने के लिये शशांक कई दिन से हिसाब मिला रहा है। देखा गया कि तुम्हारा सारा रुपया डूब गया है। उसके ऊपर भी जो देना ठहरा है उसके लिये शायद मकान बेंचना पड़ेगा।"

शर्मिला ने पूछा--"सत्यानाश इतनी दूर तक बढ़ गया! वे जान ही नहीं सके?"

मथुरा ने कहा--"सत्यानाश प्रायः गाज गिरने के समान आता है। जिस क्षण मारता है उससे पहले उसका पता भी नहीं चलता। शशांक ने समझा था कि नुक़सान हो रहा है। उस समय थोड़े में ही सम्हाल लिया जा सकता था, लेकिन दुर्बुद्धि हुई। कारबार की ग़लती को जल्दी-जल्दी सुधार लेने के लिये कोयले के बाज़ार में तेज़ी-मंदी का खेल खेलने लगा। तेज़ी के बाज़ार में जो ख़रीदा था उसे मंदी के बाज़ार में बेंच देना पड़ा। अचानक आज मालूम हुआ कि अतिशबाज़ी की तरह सब उड़ गया है, बच रही है केवल राख। इस समय यदि भगवान की कृपा से नेपाल में काम मिल जाय तो तुम लोगों को भटकना नहीं पड़ेगा।"

शर्मिला ग़रीबी से नहीं डरती। बल्कि वह जानती है कि अभाव के समय पति की गृहस्थी में उसका स्थान

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