चोरी की है, बड़े-बड़े गुदामों की छतें झँझरी हो गई हैं, उस दिन की वृष्टि से इसका पता लगा है। माल बरबाद हो रहा है। हमारी कंपनी का बड़ा नाम है, इसीलिये उन लोगों ने जाँच नहीं की थी। अब बड़ी भारी निन्दा और नुक़सानी गर्दन पर सवार हो गई है। मथुराभैया अलग होना चाहते हैं।"
ऊर्मि की छाती धक्-धक् करके धड़कने लगी। क्षणभर में बिजली की रोशनी में मानों उसने अपने मन के प्रच्छन्न रहस्य को देख लिया। स्पष्ट ही समझ गई कि न जाने कब अनजाने में उसके मन का भीतरी हिस्सा मतवाला हो उठा था,---भला-बुरा वह कुछ भी सोच नहीं सकी थी। शशांक का कार्य ही मानों उसका प्रतिद्वंदी था, उसीसे उसकी कुट्टी थी। उसे कामकाज से अपने पास खींच लाने के लिये ऊर्मि सदा छटपटाया करती। कितनी ही बार ऐसा हुआ था कि शशांक स्नानागार में था और काम से यदि कोई मिलने आया तो ऊर्मि ने कहला दिया, "कह दो अभी भेंट नहीं होगी।"
उसे डर बना रहता कि कहीं ऐसा नहा कि स्नान से निकलते ही शशांक को फुरसत न मिले; कहीं ऐसा न हो कि वह कामकाज में उलझ जाय और उर्मि का