पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/६९

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देव और विहारी रस-राज कविता का उद्देश, हमारी राय में, आनंद-प्रदान है। कविता- शास्त्र के प्रधान प्राचार्यों ने * देववाणी संस्कृत में भी कविता का मुख्य उद्देश यही माना है। कविता लोकोत्तर आनंद-दायिनी है।।

  • ......सकलप्रयोजनमौलिभूतं समनन्तरमेव रसास्वादनसमुद्भतं

विगलितवेद्यान्तरमानन्दम् ......यत्काव्यं लोकोत्तरवर्णनानिपुण कविकर्म. मम्मट + The joy which is without form, must create, must translate itself into forms. The joy of the suger is expressed in the form of a song, that of a poet in the form of a poem, and they come out of his abounding joy. रवींद्रनाथ The end of poetry is to produce exeitemeat in co-existence with -an over-balance of pleasure. वड्सवर्थ 'A poem is a species of composition opposed to Serence as having intellectual pleasure for its object or end' and its perfection is 'to communicate the greatest immediate pleasure from the parts •compatible with the largest sum of pleasure on the whole.' कालरिज जस, संपति, आनंद अति, दुरितन डारै खोय ; होत कबित मैं चतुरई, जगत रामबस होगा। कुलपति