पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/६४

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BREDURADIRasdarlanAmAM IRMIKARANirmwaainararamatara भूमिका ६० हस प्रावृट-काल में भारत में नहीं रहते । चक्रवाकों के संबंध में न तो यही समय-ख्याति है कि वे रहते हैं और न यही कि वे चले जाते हैं । बस, हंसों और चक्रवाकों की वर्षा-कालीन स्थिति में यही भेद है। चक्रवाकों के संबंध में यह एक और समय-ख्याति है कि उनका जोड़ा रात में बिछुड़ा रहता और दिन में मिल जाता है। यह समय-ख्याति प्रकृति-निरीक्षण के विरुद्ध है। यथार्थ में चक्रवाकी और चक्रवाक रात में भी साथ-ही-साथ रहते हैं, बिछुड़ते. नहीं। इसीलिये उनका नाम भी द्वंद्वचर पड़ा है। फिर भी कवि- जगत् में इस कोक-कोकी-वियोग की बात, असत्-निबंधन (अस- तोऽपि क्रियार्थस्य निबन्धनम्, यथा-चक्रवाकमिथुनस्य भिन्नतटा- अयणं, चकोराणां चन्द्रिकापानं च ) होते हुए भी, माननीय है। जो कविगण समय-ख्याति के फेर में पड़कर, प्रकृति-निरीक्षण के विरुद्ध, कोक-कोकी-वियोग का वर्णन करने में बिलकुल नहीं हिचकते, उन्हीं में के दो-एक ने यदि वर्षा में भी चक्रवाक का वर्णन कर दिया, तो क्या हुआ ? प्रकृति-निरीक्षण के विचार से रात्रि में कोक- कोकी-वियोग का वर्णन भूल है । वर्षा में वही वर्णन दुहरी भूल है। पहली भूल समय-ख्याति के कारण कवि-जगत् में क्षम्य है, पर प्रकृति-जगत् में नहीं । हमारे एक मित्र की राय है कि वर्षा में जहाँ कहीं संस्कृत के कवियों ने चक्रवाक का उल्लेख किया है, वहाँ पर उसका अर्थ बत्तख्न (Duck) है। आपटे ने अपने प्रसिद्ध कोष में यह अर्थ दिया भी है। अस्तु हमारी राय में हंस और चक्रवाक समान जाति के पक्षी हैं और वे वर्षा में भारतवर्ष के बाहर चले जाते हैं। प्रकृति-निरीक्षण के मामले में प्रत्यक्ष प्रमाण ही सर्वोत्कृष्ट प्रमाण है । बड़े-से-बड़े कवि के यदि ऐसे वर्णन मिलें, जो प्रत्यक्ष प्रमाण के विरुद्ध हों, तो वे भी माननीय नहीं हो सकते। विहारीलाल ने पावस-काल में इस देश में चक्रवाक-चक्रवाकी