देव और विहारी मानस की ओर चले जाते और उन्हीं के साथ, शरद्-ऋतु का प्रारं होते ही, फिर आ जाते हैं। लाखों रुपए खर्च करके, घोर परिश्रम तथा अध्यवसाय के साथ, विहंग-विद्याविशारदों ने जो भारतीय पक्षिशास्त्र तैयार किया है, उसमें भी यही बात लिखी हुई है। हमारा विश्वास है और प्रत्यक्ष में हम देखते भी हैं कि वर्षा-काल में चक्रवाक दिखलाई नहीं पड़ते । इसी बात को हम सही मानते हैं । चक्रवाक, हंसों के समान ही, न तो भारत में घोंसले बनाते हैं, न अंडे देते हैं और न यहाँ उनके बच्चे उत्पन्न होते हैं। __संस्कृत के एकाध कवि ने वर्षा-काल में चक्रवाकों का वर्णन किया है। इस बात को लेकर एक पक्ष कहता है कि जब हमारे प्राचीन कवियों ने पावस में इन पक्षियों का वर्णन किया है, तब वे इस समय भारत में अवश्य होते हैं। चाहे प्रावृट-काल में चक्रवाक प्रत्यक्ष न भी दिखलाई पड़ें, चाहे विहंग-विद्याविशारद तथा अन्य ज्ञाता लोग भी उनके न होने का ही समर्थन करें, पर इन लोगों के ये प्रमाण तुच्छ हैं। इन प्रमाणों की अवहेलना करके ये लोग कुछ प्राचीन संस्कृत-कवियों के प्रमाण को ही ठीक मानने के लिये तैयार हैं। अपने प्राचीन कवियो के कथनों को, प्रत्यक्ष के विरुद्ध होते हुए भी, ठीक मानना गंभीर आदर का परिचायक अवश्य है । हम इस भाव की सराहना करते हैं। पर खेद यही है कि वह ज्ञान-वृद्धि का बाधक है, साधक नहीं । प्रकृति-निरीक्षण एवं कवि-संप्रदाय इन दोनों ही प्रकारों से यह बात सर्व-सम्मत है कि हंस वर्षा-काल में भारत के बाहर चले जाते हैं। पर हमें कुछ ऐसे भी प्राचीन संस्कृत श्लोक मिले हैं, जिनमें वर्षा में हंसों का वर्णन है । हमें भय है कि प्राचीन कवियों के कथनों को सर्वश्रेष्ठ प्रमाण माननेवाला दल उन श्लोकों को देखकर वर्षा में हंसों की सत्ता के संबंध में भी आग्रह न करने लगे। कवि-जगन् की सम्मति में, कवि-समय ख्याति के अनुसार,
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/६३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।