परिशिष्ट पूर्वी तुर्किस्तान, पंजाब, संयुक्त-प्रांत, नेपाल, बंगाल, राजपूताना, मध्य-भारत, कच्छ, गुजरात तथा दक्षिण भारत के कुछ भागों में इसके होने का वर्णन किया है। सिंध-प्रांत की झीलों में तथा सिंधु-नदी के किनारे यह पक्षी बहुत पाया जाता है। संयुक्त-प्रां में भी इसकी कमी नहीं। जिस समय गेहूँ जमने पर होता है, उस समय चकवों के बड़े-बड़े झुंड सूर्योदय और सूर्यास्त के समय खेतों में पहुँच जाते और फसल को बड़ी हानि पहुंचाते हैं। मिस्टर रीड एक सुप्रसिद्ध शिकारी थे। वह अपनी Game birds- नामक पुस्तक में चक्रवाक का हाल यों लिखते हैं- ___ "वह (चकवा) अपने ही बचाव के बारे में विशेष सजग नहीं रहता, बल्कि शिकारी के सामने झील की ओर उड़कर दूसरों को भी सचेत करने के लिये शब्द करता है और अन्य पक्षी भी उसका साथ देते हैं।" चक्रवाक का निवास स्थान भारत में नहीं है। यह तथा इस जाति के अधिकांश पक्षी उत्तर दिशा से शरद् ऋतु में यहाँ आते और वसंत के प्रारंभ में फिर अपने देश को वापस जाते हैं। उत्तर दिशा से शरद् ऋतु में भारत आनेवाले पक्षियों के विषय में सर्जन जनरल बालफूर अपनी Eneyelopedia of lndia- पुस्तक (भाग १, पृ० ३८१) में यों लिखते हैं- ___ The grallatorial and natatorial birds begin to arrive ia Nepal from the North towards the close of August and conti- nue arriving till the middle of Sertember, The first to arrear are the common snipe and jack-snipe and rhynchaa, vert the scolopaceous waders (except wood-cock ), next the birds of heron and stork and crane families. then the natstores and lastly the wood cocks which do not reach Nepal till November, The time of reappearance of these birds from the South is
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