A देव और बिहारी केशवदास संस्कृत के पूर्ण पंडित थे । उनकी भाषा पर संस्कृत की पूर्ण रीति से छाप लगी हुई है। बुंदेलखंडवासी होने से उक्त प्रांत के शब्द भी उनकी कविता में बहुतायत से पाए जाते हैं। इस प्रकार संस्कृत और बुंदेलखंडी से ओत-प्रोत ब्रजभाषा में केशव- दास ने कविता की है । देव की भाषा अधिकांश में ब्रजभाषा है। जान पड़ता है, पूर्ण विद्योपार्जन करके प्रौढ़ वास में केशवदास ने कविता करना प्रारंभ किया था। इधर देवजी ने षोडश वर्ष की किशोरावस्था में ही रचना-कार्य प्रारंभ कर दिया था। केशवदास की मृत्यु के संबंध में यह किंवदंती प्रसिद्ध है कि वह मरकर भूत हुए थे । जान पड़ता है, देवजी के समय में भी यह बात प्रसिद्ध थी, क्योंकि उनके एक छंद में इस बात का उल्लेख है- - अकबर बीरबर बीर, कविबर केसी, ____ गंग की सुकबिताई गाई रसपाथी नै ; xx एक दल-सहित बिलान एक पल ही मैं, , एक भए भूत, एक माजि मारे हाथी नै । । । उपयुक्त वर्णन में बरिबल का दलबल-समेत मारा जाना, केशव दोस का भूत होना एवं गंगकवि का हाथी से कुचला जाना स्पष्ट सान्द्रों में वर्णित है। देवजी की मृत्यु के संबंध में किसी विशे घटना को पाश्रय नहीं मिला है। । भाषा-विचार केशव और देव को भाषा में बहुत कुछ भेद है । मुख्यतया दोनों की कवियों ने प्रजभाषा में कविता की है, पर केशव की भाषा में
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