पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२६९

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पारोशेष्ट उसे पराग के दर्शन होते हैं । उसे जान पड़ता है कि प्रत्येक बाग़ में फाग मची हुई है। इसमें व्याकरण का अनौचित्य कहाँ ? 'फागु'. का व्यवहार देवजी ने स्त्रीलिंग में किया है और बहुत ठीक किया है। ठाकुर, रघुनाथ, शंभु, शिवनाथ, बेनीप्रवीन एवं पजनेस आदि अनेक कवियों ने भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न स्थानों पर कविता की है। इन सबने तथा हिंदी के अन्य कवियों ने 'फागु' को स्त्री- लिंग में रक्खा है। उदाहरण लीजिए- (१) फागु रची कि मची बरपा है (१) मचि रही फागु और सब सब ही पै घालें रंग (३) फाग रची वृषभान के द्वार पै (४) साँझ ही ते खेलत रसिक रस-भरी फागु (५) लीन्हें ग्वाल-बाल स्याम फागु प्राय जोरी है (६) राची फागु राधा रौन (७) फागु मची बरसाने मैं श्राजु इत्यादि । स्वयं समा- लोचक ने अपने सूक्ति-सरोवर में पृष्ठ १८६, १८७ और १९१ पर क्रम से 'खुब फाग हो रही है', 'बरसाने में फाग हो रही है', 'फाग हो रही है' प्रादि वाक्य लिखकर स्वीकार कर लिया है कि फाग' का व्यवहार स्त्रीलिंग में ही अधिकतर होता है । तब देव ने भी यदि स्त्रीलिंग में लिखा, तो क्या अपराध किया? (६) देवजी पर यह भी आक्षेप है कि उन्होंने महावरों की मिट्टी पलीद की है । उसका भी एक उदाहरण लीजिए । चला नहीं जाता है, इसके स्थान पर देवजी ने 'चल्यो न परत' प्रयोग किया है। ऐसा प्रयोग अशुद्ध बतलाया गया है, पर हम 'कहा नहीं जाता, 'सहा नहीं जाता' अादि प्रयोगों के स्थान में 'कहो न परै', 'सझो न परै' आदि प्रयोग बड़े-बड़े कवियों की कविता में पाते हैं। 'चल्यो न परत' प्रयोग भी वैसा ही है । उदाहरण लीजिए- जीरन जनम जात, जोर जुर घोर परि, पूरन प्रकट परिताप क्यों करो परै ;