पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२६६

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२७४ PPPMEArmmmam देव और विहारी तुच्छ है । निष्कर्ष यह निकलता है कि थोड़े-से भाषा-संबंधी अनौ- चित्य के कारण शेक्सपियर के यश को बहुत कम धक्का लगा है। महाकवि देवजी पर भी शब्दों को गढ़ने, उनके मनमान अर्थ लगाने तथा व्याकरण-विरुद्ध प्रयोग प्रचलित करने का दोष लगाया गया है। यदि ये सब दोष ठीक ठहरते, तो भी हमारी राय में देवजी के यशःशरीर को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचती । परंतु हर्ष के साथ लिखना पड़ता है कि उन पर लगाए गए आक्षेप वास्तव में ठीक नहीं हैं । ऐसे संपूर्ण आक्षेपों पर हमने अन्यत्र विचार किया है। यहाँ दो-चार उदाहरण. ही अलम् होंगे- (.) देवजी ने गुझाई' और 'गृझत' शब्दो का प्रयोग किया है। इस पर आक्षेप यह है कि ये शूब्द गड़े गए हैं। यदि यह श्राक्षेप ठीक माना जाय, तो प्रश्न यह उठता है कि क्या नए शब्द निर्माण करने का स्वत्व लेखक और कवि को नहीं है । यदि है, तो विचारिए कि 'गुझाई' और 'गूझना' का निर्माण उचित रीति से हुआ है या नहीं । युध् और बुध् धातु एक ही गण की हैं । युध् से युद्ध रूप बनता है। युद्ध का प्राकृत रूप 'जुज्झ' है एवं क्रिया रूप में 'जूझना प्रचलित है । इसी प्रकार बुध से बुद्धि या बुद्ध और फिर प्राकृत में 'बूम' बनता है और वही 'बूझना' रूप से क्रिया का काम करता है । परिवेष्टन के अर्थ में 'गुध्' धातु भी इसी गण में है। इस गुथ् से गुद्ध, गुज्झ और फिर 'गूझना' रूप नितांत स्वाभा- विक रीति से निर्मित हो जाते हैं, किसी प्रकार की खींचातानी की नौबत नहीं आती । 'गूझना' का प्रयोग और कवियों ने भी किया है। (२) देवजी ने टेसू के लिये किंसु' और नवीन के लिये 'नूत' शब्द का प्रयोग किया है । इस पर प्रक्षेप यह है कि देवजी को "किसुक' का 'क' उड़ाकर किंसु' रूप रखने का कोई अधिकार n-ran "