पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२६५

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परिशिष्ट २७३ महाकवि शेक्सपियर की कविता को लेकर प्रसिद्ध विद्वान् एबट ने प्राय. २०० पृष्टी की एक शेक्सपीरियन ग्रामर की रचना की है । इसकी भूमिका में लेखक ने लिखा है कि शेक्सपियर की भाषा में व्याकरण की प्रत्येक प्रकार की स्पष्ट भूलें पाई जाती हैं * तथा संज्ञा, क्रिया, सर्वनाम और विशेषण आदि का प्रयोग शेक्स- पियर ने मनमाने ढंग से किया है। महामति रैले ने भी शेक्स- पियर पर एक दोसो पृष्ठ का ग्रंथ लिखा है। उनकी भी राय है कि शेक्सपियर ने मनमाने शब्द गढ़े हैं तथा उनका अर्थ भी अत्यंत विचित्र लगाया है । रैले महोदय का कहना है कि जैसे बालक अपनी विचित्र भाषा बनाया करते हैं, वही बात शेक्स- पियर ने भी की है। यही नहीं, शेक्सपियर के उष्ण मस्तिष्क से जो भाषा निकली है, वह व्याकरण के नियमों की भी पाबंद नहीं है। एक स्थान पर इन्हीं सामलोचक महोदय ने कहा है कि शेक्सपियर के अनेक पद्य ऐसे हैं, जिनका व्याकरण की दृष्टि से विश्लेषण किया जाय, तो कोई अर्थ ही न निकले। उनकी राय है कि ऐसे पद्यों को जल्दी-जल्दी पढ़ते जाने में ही आनंद आता है। फिर भी इन दोनों समालोचकों ने पाठकों को यह सलाह दी है कि शेक्सपियर के समय में प्रचलित भाषा एवं महावरों का अभ्यास करके ही शेक्सपियर की कविता का अध्ययन करें । जो हो, एबट और रैले के मत से परिचित होने के बाद पाठकगण इस बात का अंदाज़ा कर सकते हैं कि महाकवि शेक्सपियर की भाषा कैसी होगी? पर भाषा-संबंधी उच्छंखलता ने शेक्सपियर के महत्त्व को नहीं कम किया । अँगरेज़ लोग उन्हें संसार का सर्वश्रेष्ठ कवि मानते हैं। कार्लाइल की राय में शेक्सपियर के सामने भारतीय साम्राज्य भी

  • Every variety of apparentgrammatic-lmistake meets use

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