उपसंहार २५४ समुचित नियंत्रण करते हुए गंभीरतापूर्वक भाव का निर्वाह करने में देवजी अद्वितीय हैं। (२) देवजी की रचनाओं में सहज ही अलंकार, रस, व्यंग्य, भाव आदि विविध काव्यांगों की झलक दिखलाई पड़ती है। यह गुण विहारीलाल की कविता में भी इसी प्रकार पाया जाता है। अतिशयोक्ति के वर्णन में विहारीलाल के साथ सफलतापूर्वक टकर लेते हुए भी स्वभावोक्कि और उपमा के वर्णन में देवजी अपना जोड़ नहीं रखते। (३) मानुषी प्रकृति का और प्राकृतिक वर्णन करने में देवजी की सूक्ष्मदर्शिता देखकर मन मुग्ध हो जाता है । बारीक-बीनी में विहारीलाल देवजी से कम नहीं हैं ; पर दोनों में भेद केवल इतना ही है कि देवजी का काव्य तो हृदय को पूर्ण रूप से वश में कर खेता है-एक बार देव का काव्य पढ़कर अलोकिक अानंद का उपभोग किए विना सहृदय पाठक का पीछा नहीं छूटता, लेकिन विहारीलाल में यह अपूर्व बात न्यून मात्रा में है। (४) देवजी की व्यापक बहुदर्शिता एवं विस्तृत अनुभव का पूर्ण प्रतिबिंब इनकी कविता पर पड़ा है। इसी कारण इनके वर्णनों में स्वाभाविकता है। अधिक कहने पर भी इनकी कविता में शिथि- लता नहीं आने पाई है। एकमात्र सतसई के रचयिता के कुछ दोहे कोई भले ही शिथिल कह ले, पर दर्जनों ग्रंथ बनानेवाले देवजी के शिथिल छंद कहीं ढूँढ़ने पर मिलेंगे! (५) व्यक्ति विशेष की प्रतिभा का प्रमाण जीवन की प्रारंभिक अवस्था में ही मिलता है। ज्यों-ज्यों अवस्था बड़तो जाती है, त्यों- त्यों विद्या एवं अनुभव-वृद्धि के साथ प्रतिभा की उज्ज्वलता भीरम- 'णीय होती जाती है। १६ वर्ष की अवस्था में 'भाव-विलास की रचना करके देवजी ने अंत समय तक साहित्य-जगत् में
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