पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२१२

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२२०. देव और विहारी उन्माद-अवस्था का चित्रण देवजी ने अद्वितीय ढंग से किया है। देवजी के पहले छंद की आन-बान ही निराली है। प्रेमी पाठक स्वयं पढ़कर उसके रसानंद का अनुभव करें । टीका-टिप्पणी व्यर्थ है। "व्याधि-वियोग-दुःख-जनित शारीरिक कृशता तथा अस्वास्थ्य को व्याधि कहते हैं।” ( रसवाटिका, पृष्ठ ८५) कर के मीड़े कुसुम-लौं गई बिरह कुँमिलाय ; सदा समीपिन सखिन हूँ नीठि पिछानी जाय । विहारी दोहे का उल्लेख फिर आगे होगा। यहाँ केवल इतना कहना है कि दोहा व्याधि-दशा का उत्कृष्ट चित्र है, जिसको विहारी-जैसे चित्र- कार ने बड़े ही कौशल से चित्रित किया है। · देवजी ने इस दशा के चित्रण में कम-से-कम एक दर्जन उत्कृष्ट छंदों की रचना की है। सभी एक-से-एक बढ़कर हैं। वियोगानल से विरहिणी झुलस गई है। वायु और जल के प्रेम-प्रयोग से, अवधि की प्राशा में, नायिका ने प्राणों की रक्षा की। अंत में अवधि का दिन भी आ गया; पर सम्मिलन न हुआ। उस दिन का अवसान नायिका को विशेष दुःखद हुआ । आगम-अनागम की शकुन द्वारा परीक्षा करने के लिये सामने बैठे हुए काग को उड़ाने का उसने निश्चय किया। पर ज्यों ही उसने हाथ उठाकर काग की ओर हिलाया, त्यों ही उसके हाथ की चूड़ियाँ निकलकर काग के गले में जा पड़ी। विरह-वश नायिका इतनी कृशांगी हो गई थी कि कंकाल- मात्र शेष रह गया था। तभी तो हाथ की चूड़ियाँ इतनी ढीली हो गई किकाग के गले में जा गिरी। कृशता का कैसा चमत्कार-पूर्ण वर्णन लाल बिना बिरहाकुल बाल बियोग की ज्वाल भई अरि झूरी पानी सों, पौन सों, प्रेम-कहानी सों, पान ज्यों प्रानन पोषत हूरी है।