पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१९८

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२०६ देव और विहारी चिन्न खींचने के पूर्व उसका दृश्य स्वयं नहीं सजाया है। उन्हें जैसा दृश्य देखने को मिला है, उसे वैसा ही रहने दिया है। पर दास ने दृश्य में कृत्रिमता पैदा करके चित्र खींचा है। उपर्युक्त सभी छंदों पर विचार करते समय पाठकों को यह बात सदा ध्यान में रखनी होगी कि दासजी परवर्ती कवि हैं, उन्होंने देव के जिन भावों को अपनाया है, उनमें कोई नूतनता पैदा की है या नहीं ? यह बात भी विचारणीय है कि 'चित्रण' और 'भाव' इन दोनों ही को स्वाभाविकता से कौन संपुटित रखता है ? कुछ लोग दासजी को देव से अच्छा कवि मानत हैं। उन्हें निस्संकोच होकर बतलाना चाहिए कि इन छंदों में किस प्रकार दासजी ने देवजी का मज़मून छीन लिया है । तुलना के मामले में छंदों की उत्कृष्टता ही पथ-प्रदर्शन का काम कर सकती है, इसलिये इन दोनों कवियों के व्यक्तित्व को भुलाकर ही हमें उनकी कृतियों को निर्णय की सुकुमार कसौटी पर कसना चाहिए। EMPORAMMAR