पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१९५

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देव-विहारी तथा दास समुझि, सकुचि न थिराति चित-सकित है, वसति, तरल उग्रबानी हरषाति है। उनींदति, अलसाति, सोवति अधीर चौक, चाहि चित्त अमित, सगर्व हरषाति है। "दास" पिय नेह छिन-छिन आव बदलति, स्यामा सबिराग दीन मति के मखाति है; जलपि, जकति, कहरति , कठिनाति मति, मोहति, मरति, बिललाति, बिलखाति है। दास नांचे को निहारत नगीचे नैन-अधर, दुबीचे परयो स्यामारुन आमा अटकन को ; नीलमनिभाग है, पदुमराग बैंक, पुखराग है रहत बिथ्यो कै निकटकन को; "देव" बिहँसत दुति दंतन जुद्रात जोति, बिमल मुकुत हीरा लाल गटकन को ; थिरकि-थिरकि थिर थान पर थाने तोरि बाने बदलत नट-मोती लटकन को। देव पन्ना-संग पन्ना लै प्रकासित छनक लै, कनक-रग पुनि ये कुरंगनि पलतु है । अधर-ललाई लावै लाल की ललकि पाय, अलक-झलक मरकत सो रलतु है। ऊदौ-अरुनौ है, पीत-पाटल-हरौ है बैंक, दुति लै दोऊ को "दास' नैनन छलतु है ;