पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१९२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० देव और विहारी अर्थात् एक कवि के भाव-सादृश्यवाले कितने छंद दूसरे कवि के वैसे ही और उतने ही छंदों से अच्छे हैं ? (८) ऊपर बतलाई गई सभी बातों पर विचार कर लेने के बाद यह देखना चाहिए कि किसके छंद में अधिक रमीयता पाई जाती है। ___ अंत को पाठकों से एक बात और कहनी है । वर्तमान हिंदी- साहित्य-संसार में एक दल ऐसा है, जो कविवर विहारीलाल को शृंगारी कवियों में सबसे बढ़कर मानता है। हमें मालूम है कि कोई-कोई कविता-प्रेमी दासजी के भी उत्कट भक्त हैं। यदि किसी को दासजी का कोई भाव विहारीलाल के तादृश भाव से बढ़ा हुआ जान पड़े, तो हम चाहते हैं कि उसको प्रकट करने में उसे किसी प्रकार का पशोपेश न करना चाहिए । फिर दासजी का यदि कोई भाव विहारीलाल के किसी भाव से बढ़ा हुआ पाया जाय, तो इससे विहारीलाल का पद गिर न जायगा । अतः कोई ऐसा कहे, तो विहारी के भक्तों को अप्रसन्न न होना चाहिए। निदान ऊपर जो कविताएँ दी गई हैं, उनको पढ़कर पाठक निर्णय करें कि दासजी ने विहारीलाल के भावों की चोरी की है या उनको यह सिखलाया है कि आइए देखिए, भाव इस प्रकार से प्रकट किए जाते हैं ! २-देव और दास दासजी ने जिस प्रकार महाकवि विहारी के भावों से लाभा- न्वित होने में संकोच नहीं किया है, ठीक उसी प्रकार महाकवि देव के भावों का प्रतिबिंब भी उनकी कविता में मौजूद है । जिन कारणों से हमने ऊपर विहारी और दास के सदृशभाववाले छंद दिए हैं, उन्हीं कारणों से यहाँ पर देव और दास के भी कुछ छंद दिए जाते हैं। साहित्यिक सीनाजोरी या चोरी की बात विध