देव-विहारी तथा दास (३) परवर्ती कवि ने पूर्ववर्ती कवि के भाव को संक्षिप्त करके- समस्त रूप में प्रकट किया है या उसको विस्तृत करके- व्यास- रूप में-दरसाया है अथवा ज्यों-का-त्यों रहने दिया है ? इन तीनों ही प्रकार से भाव के प्रकट करने में पूर्ववर्ती कवि के भाव की रमणीयता घटी है या बढी अथवा ज्यों-की-स्यों बनी रही ? (४) छंद में भाव को पुष्ट करनेवाली सामग्री का सफलता- पूर्वक प्रयोग किसने किया है ? किसकी रचना में व्यर्थ के शब्द आ गए हैं तथा किसकी रचना में व्यर्थ का एक शब्द भी नहीं आने पाया है ? (५) समालोच्य कवियों ने जिस भाव को प्रकट किया है, उसको यदि किसी उनके भी पूर्ववर्ती कवि ने प्रयुक्त कर रक्खा है, तो यह देख लेना वाहिए कि ऐसा तो नहीं है कि दोनों कवियों ने इसी तीसरे पूर्ववर्ती कवि का भाव लिया हो ? यदि ऐसा हो, तो यह विचारना चाहिए कि उस पूर्ववर्ती कवि के भाव को इन दोनों में से किसने विशेष रमणीय बना दिया है ? (६) काव्यांगों का किसकी कविता में अधिक समावेश है ? काव्यांगों पर भी विचार करते समय यह बात ध्यान में रखनी पड़ेगी कि उत्कृष्ट काव्यांग किसकी रचना में अधिक हैं ? हमारे इस कथन का तात्पर्य यह है कि काव्यांगों में शब्दालंकार से अर्थालंकार में एवं इससे रस में तथा रस से व्यंग्य में उत्तरोत्तर काव्य की उत्कृष्टता मानी गई है। दोनों कवियों की रचनाओं पर विचार करते समय यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि यदि दोनों कवियों की कविता में काव्यांग पाए जाते हैं, तो उत्कृष्ट काव्यांग किसकी कविता में अधिक हैं? (७) औसत से भावोत्कृष्टता किसकी कविता में अधिक है,
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