पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९
भूमिका

किसी भाषा में कम या अधिक मधुरता तुलना से बतलाई जा सकती है । अपनी भाषा में वही शब्द साधारण होने पर भी दूसरी भाषा में और दृष्टि से देखा जा सकता है । अरबी के शब्द उर्दू में व्यवहृत होते हैं। अपनी भाषा में उनका प्रभाव चाहे जो हो, पर उर्दू में वे दूसरी ही दृष्टि से देखे जायँगे । भारतवर्ष के जानवरों की पंक्ति में श्रास्ट्रोलिया का कंगारू जीव कैसा लगेगा, यह तभी जान पड़ेगा, जब उनमें वह बिठला दिया जायगा । संस्कृत के शब्दों का संस्कृत में व्यवहृत होना वैसी कोई असा- धारण बात नहीं है, पर भिन्न देशी भापात्रों में उनका प्रयोग और ही प्रकार से देखा जायगा । संस्कृत में मीलित वर्णों का प्रचु-रता से प्रयोग किया जाता है । प्राकृत में यह बात बचाने की चेष्टा की गई है । प्राकृत संस्कृत की अपेक्षा कर्ण-मधुर है । यद्यपि पांडित्य-प्रभाव से संस्कृत में प्राकृत की अपेक्षा कविता विशेष हुई है पर प्राकृत की कोमलता * उस समय भी स्वीकृत थी, जिस समय संस्कृत में कविता होती थी। इसी प्रकार तुलना की भित्ति पर ही अंगरेज़ी की अपेक्षा इटैलियन-भाषा रसीली और मधुर है। इसी मधुरता को मानकर अँगरेज़ी के प्रसिद्ध कवि मिल्टन ने इटली में भ्रमण करके इसी माधुरी का श्रास्वादन किया था। इटैलियन-जैसी विदेशी भाषा की शब्द-माधुरी ने ही निज देश-भाषा के कट्टर पक्ष-पाती मिल्टन को उस भाषा में भी कविता करने पर बाध्य किया था।

  इसी माधुरी का फारसी में अनुभव करके उर्दू के अनेक कवियों ने फारसी में भी कविता की है और करते है।उत्तरीय भारत

परसा सक्क अबन्धा पाउ अबन्धो विहोइ.. मुङमारो, पुरुस महिलाणं जेन्ति अमिह अन्तरं तेत्तिय मिमाणम् । (कर्पूर-मंजरी) PORAN