१३६ देव और विहारी पायो न सिरावन-सलिल छिमा-छीटन सों ____ दूध-सो जनम बिन जाने उफनायगो । निर्दोष, परंतु अनुभव-शून्य, होने के कारण पद-पद पर भूलों से भरे जीवन की उपमा औटे हुए दूध के कितनी अनुरूप, मार्मिक और करुण है । जगत् के हितचिंतकों को ही देवजी सुजान, सजन और सुशील समझते हैं; यथा- जेई जग-मीत, तेई जग में सुजान जन; ____सज्जन, सुशील सुख-सोमा सरसाहिंगे। (१०) देवजी ने सोलहवें वर्ष में भाव-विलास की रचना की थी। इससे स्पष्ट है कि अनुभव के अतिरिक्त उनमें स्वाभाविक प्रतिभा भी खूब थी । इस अवस्था में हिंदी के अन्य किसी बड़े प्रसिद्ध कवि के भाव-विलास-सदृश ग्रंथ बनाने का पता नहीं चलता। २-विहारी विहारीलाल का ज्ञान भी परिमित न था। उन्होंने भी संसार बहुत कुछ देखा था। दुनिया के ऊँच-नीच का उनको पूरा ज्ञान था । उनका अनुभव बेहद बढ़ा हुआ था। पर वे शृंगार-रस के अनन्य भक्त थे। अपने सारे ज्ञान की सहायता से उन्होंने शृंगार- रस का श्रृंगार कर डाला है। स्त्री-योग को पाकर वे लोचन-जगत् को रसमय कर डालते थे। मंगल और बृहस्पति का एकत्रित होना, उनके लाल और पीले रंग का प्रभाव, बेंदी और केसर-बाड़ के साथ, नायिका के मुख-मंडल पर ही दृष्टिगत होता है। उनका सारा ज्योतिष-ज्ञान शृंगार-रस की इसी प्रकार सहायता करता है । गणि- तज्ञ विहारी बिंदी लगाकर तिय-ललाट पर अगणित ज्योति का उद्योत करते हैं।
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