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देव-सुधा

रूप में षड् ऋतु।

खगी रहै = गड़ी रहै । उषमा = गरमी । मयूष = किरणें । मान कसे = मान-युक्त होने से । जामिनि जगी रहै = रात्रि जगती है,अर्थात् बहती है । उमगी रहै = उल्लसित बनी रहे । कुमुदिनी =(कुमुद), गदूल, कोकाबेली ; पद्मिनी (नायिका)। पर = पक्ष ।नायिका के स्वरूप एवं भावों को ऋतुओं से समानता दी गई है।आई हुती अन्हवावन नायनि सोधो लिए कर सूधे सुभायनि, कंचुकी छोरी उतै उवटैबे को ईगुग्-से अंग की सुखदायनि ; देव सरूप की गसि निहारति पायँ ते सीस लौ सीम ते पायनि, है रही ठौर ही ठाढ़ी ठगी-सो, हँसैकग्ठोढ़ीधरेठकगयनि।।१२१॥

सोधो = सुगंधित द्रव्य (शोधन-शब्द से निकला है, जिसका अर्थ स्वच्छ करना है )। उबटेवे को = उबटन करने को ।

घाँघरो घनेरो लाँबी ल₹ लटे लाँक पर, काँकरेजी सारी खुली अधखुगी टाड़ वह ;

गोरी ग़ज-गौनी दिन दूनी दुति होनी देव, लागति सलोनी गुरु लोगन के लाड़ वह ।

चंचल चितौनि चित चुभी चितचोरवारी, मोरवारी बेसरि श्रो' केसरि की आड़ वह ;

हँसि-हँसि बोलन की गोरे-गोरे गोलन को, कोमल कपोलन की जी मैं गड़ी गाड़ वह ॥२२॥

लटे = क्षीण, पतले । लाँक = कटि ( लंक)। टाड़ = टड़िया ; भुजाओं पर पहनने का भूषण । मोरवारी बेसरि = मोर (आभूषण) युक्त नथ । मोर एक गहना है, जो मयूर की प्राकृति का सोने में मोती पिरोकर बनता है।