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देव-सुधा
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करके उसका अभाव मानना अनुचित है), तेरा प्रिय पति अनुकूल (केवल तुझमें अनुरक्त ) है, ( जिससे ) तेरे दोनो कुल उजियाले हैं । गर्व अनुचित है, जो अहूल यौवन ( अनेद्य बढ़ती जवानी) नदी को कूल है, सो अहू ( अब भी) लहै (प्राप्त कर )। (प्रयोजन यह है कि अनेदित यौवन नदी का किनारा है, अर्थात् स्थिर नहीं रहता है। उसे प्राप्त कर, अर्थात् उससे आनंद ले। : ( तेरे दूलह के) हृदय में (तेरी रुखाई से ) हूल (दर्द) है, उसे एक पल भी चैन नहीं मिलती, एक पल-भर दूलह को देख, दो पल- भर विहार प्राप्त कर । उत्तमा सखी की मानवती नायिका को शिक्षा है।

आई बरसाने ते वुलाई वृषभानु-सुता, निरखि प्रभान प्रभा भानु की अथै गई ;

चक- चकवान को चुकाए चक चोट न सों, चकित चकोर चकचौंधी-सों चकै गई ।

नंदजू के नंदजू के नैनन अनंदमयी, नंदजू के मंदिरन चंदमयी छै गई;

कंजन कलिनमयी, कुंजन अलिनमयी गोकुल को गलिन नलिनमयी कै गई ॥ १०७ ॥

बरसाने = राधिका की जन्मभूमि का गाँव । अथै गई = अस्त हो गई । चुकाए = भुला दिए । चक चकवान = चक्राकी और चक्रवाक (चकई और चकवा)। चक-चोटन = नैन-सैन (चक = चनु)। चकै गई = छका गई, चकित कर गई। नंदजू के नंदजू = (नंद- पुत्र ) कृष्णजी । छै गई = पूरित हो गई, छा गई । नलिनमयी कै गई = कमलमयी रास्ता बना गई। यथा तुलसीदासजी ने