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देव-सुधा

बाहनि के जोट काम कंचन के कोट गयो ओट है दमोदर दुरोदर को दामु सो।। ८३ ॥

जुटाय = इकट्ठी करके । दामु = रस्सी ( लाज का बंधन)। भासमंडल ते घामु सो = जैसे सूर्य की धूप देखते-देखते लुप्त हो जाती है, वही दशा भगवान् की हुई। दुरोदर को दामु = ढपोर शंख द्वारा वादा किया हुआ धन ।

कालिंदी के कूलनि तरुनि तरु - मूलनि निहारि हरि अंग के दुकूलनि उघेरती ;

मल्लो मले। मालती नेवारी जाती जूही देव, अंचकुल, बकुलई कदंबन मैं हेरतीं।

ताल दै-दै तालनि तमालनि 4 मिलत फिरें, बालि-बोलि बाल भुज भेटि भट भेरती ;

पुनकि-पुनकि पुलिननि + मैं पुलोमजा X सी बिलपि विलोकि कान्ह-कान्ह करि टेरती ॥ ८ ॥

भट भेरती = धक्का खाती फिरती हैं। रास के अंतर्गत वियोग का बहुत अच्छा वर्णन है। --- .

  • मल्लिका, बेला ।

+ मलयज, चंदन ।

  • चमेली।

S मौलसिरी।

पाकृष्ण खदिर ( काले खैर का दरहत)।

+ किनारों। ४ शची ( पुलोमा से उत्पन)।