भरिबी = पूरा करूँगी, वितीत करूँगी । अंतक = यम । और =
दूसरी ( सखियाँ)। बीर = हे सखी !
फंकि-फंकि कि मंत्र मुरली के मुख जंत्र कीन्हो प्रेम परतंत्र लोक लीक ते डुलाई है।
तजे पति मात तात गात न सँभारे कुल- बधू अधरात बन भूमिन भुलाई है।
नाथ्यो जो फनिंद इंद्रजालिक गोपाल गुन, गाडरू* सिंगार रूपकला अकुलाई है;
लीलि-लीलि लाज हग मीलि-मीलि काढी कान्ह, कीलि-कीलि ब्यालिनी-सी ग्वालिनी बुलाई है।।८१॥
कवि कृष्ण को इंद्रजाली बनाकर व्यालिनी-गोपियों का आकर्षिय हो पाना वर्णन करता है।
कीलि-कीलि = विवश कर-करके ।
घोर तरु नीजन बिपिन तरुनीजन है निकसीं निसंक निसि आतुर अतंक मैं ;
गन न कलंक मृदु - लंकनि मयंक • मुवी। पंकज-पगन धई भागि निसि पंक मैं।
भूषननि भूलि पैन्हे उलटे दुकूल देव , खुले भुजमूल प्रतिकूल बिधि बंक मैं ;
- सर्प का पकड़नेवाला या उसका विष उतारनेवाला । ऐसे मंत्र में
गरूड़ की हाँक दी जाती है, इसी से उस मंत्र-विद्या का नाम गारुदि है।