यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
देव-सुधा

भूलि उठे खग = पक्षीगण भूल गए हैं, अर्थात् इतना अहार- विहार का प्राधिक्य हुआ कि उनको दिशा-भ्रम भी होने लगा। मृग सूलि उठे उरश्रादि = हिरनों के हृदय में विरहाग्नि' दहकने लगी, क्योंकि पतझड़ हो जाने के कारण उनकी एकत्र स्थिति नहीं रही। सीतल, मंद, सुगंध खुलावति पौन डुलावति को न लची है, नौल गुलाबनि कौल फुलावनि जोन-कुलावनि प्रेम पची है; मालती, मल्लि, मलेज, लवंगनि, सेवती संग समूह मची है , देव सुहागनि आजु के भागनि देखुरी, बागनि फागु मची है।.७६।।

प्रकृति में फाग का रूपक बँधा है। नौल = नवल = नवीन । कौल (कोल ) = कमल । जोन-कुलावनि (जोन्ह + कुल + अवनि ) = चाँदनी के समूह से युक्त पृथ्वी ; यहाँ चाँदनी के फैलने तथा गुलचाँदनी-जाति के पुष्पों के फूलने से प्रयोजन है । सची = संचित ।

माधुरी झोरनि फूलनि भौंनि बौरनि-बौरनि वेति बची है , केसरि किसु कुसुभ कुनै किरवार कनैर निरंग रची है। फूले अनारनि चंपक-डारनि ले कचनारनि नेह तची है , कोकिल गगनि नूत परान देखुरी, बागनि फागु मची है।।७।।

प्राकृतिक शोभा में फाग का चित्र। झोरनि = गुच्छों में । बौरनि = (१) बौराए हुए, ( २ ) मंजरियों में । कुरो ( कुरै या = एक वृक्ष जो जंगलों में होता है, और जिसकी पत्तियाँ लंबी ओर लहरदार होती हैं। इसमें लंबे और सुगंधित फूल लगते हैं, जो सफ़ेद, लाल-पीले और काले या नीले रंग के होते हैं । इन फूलों के गुण वैद्यक-शास्त्र में पृथक्-पृथक् माने गए हैं। किरवार = अमलतास।

  • प्रयोजन यह कि बेलि का रूप भर दिखता है तथा वह उपयुक्त

वस्तुवों से पूर्णतया ढकी सी है।