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देव-सुधा
(७)
चंद-चाँदनी
नगर निकेत रेत खेत सब सेत-सेत, ससि के उदेत कछु देत न दिखाई है।
तारका मुकुत-माल झिलिमिलि झालरनि बिमल बितान नभ प्राभा अधिकाई है।
सामोद प्रमाद ब्रज-बीथिन बिनोद देव चहूँ कोद चाँदनी की चादर बिछाई है;
राधा मधुमालतिहि माधव मधुप मिल पालिक पुलिन झीनी परिमल झाई है।। ५५॥
राधा और माधव के मिलन का वर्णन है। निकेत = घर । रेत = बालू। बितान = चाँदनी ( चंदोवा )। सामोद = श्रामोद ( आनंद )- सहित । पालिक-पलंग । पुलिन = रेतीला नदी का किनारा । परिमल = पराग ।
राधा मधुमालती ( फूल ) है, जिसे भ्रमर रूपी माधव मिले हैं। पुलिन ही पलका है, तथा उस पर पराग ही हल्का उजियाला है।
आसपास पूरन प्रकास के पगार सूझ, बनन अगार डीठ गली है निबरते;
- तारे।
- वनों, भवनों, गलियों में दृष्टि से निवृत्त होते हैं, अर्थात्
नज़र में गुज़र जाते हैं। अगार = भवन ।