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देव-सुधा
छंद के लक्षण भी दिखलाता है। प्रत्येक चरण में दो नगण (1)
(ग) मगण ( sss ) और दो यगण (15) (Is ) हैं।
गहिराई = गहरी की, अर्थात् अगाधता प्रकट की। बीचि = लहर ।
आश्रयदाता
भूलि गयो भोज, बलि-बिक्रम बिसरि गए, जाके आगे और तन दौरत न दीदे हैं;
राजा राइ राने उमराइ उनमाने, उनमाने निज गुन के गरब गिरबीदे हैं।
सुबस बजाज जाके सौदागर सुकबि, चलेई आवैं दस हूँ दिसान के उनीदे हैं;
भोगीलाल भूर लाख पाखर लिवैया जिहि, लाखन खरच रचि श्राखर खरीदे हैं ॥४१॥
दीदे = आँख की पुतलियाँ, दृष्टि । उनमाने = अनुमाने, अंदाजे । उनको माना । गिरबीदे = गिरी रक्खे हुए, रेहन । पाखर = ( पारख) परख करनेवाला।
गौरी-सौभाग्य
अचल सो रह्यो पुरोहित हिमंचल को, अंचल हगंचल सों गाँठि-सी परत ही;
- पलकों की अंचल से गाँठ पड़ी. अर्थात् न पलक पड़ती है, न
अंचल गिरता है । प्रयोजन यह है कि निर्निमेष आँख अंचल के भीतरवाले अंगों पर लग गई। इसी कारण पुरोहित स्तब्ध हो गया।