दूजो नहिं देव, देव पूजों राधिका के पद, पलक न लाऊँ धरि लाऊँ पलकनि पैक।। ८ ॥
सखी गोपियों को शिक्षा देती है, और उनसे राधिका की प्रार्थना तथा पूजा करने को कहती है।
छार डारौं = धूल डाल दूंगी । फलकनि = तहते, पट्टे ।। नजीकी = पास की। हौं = मैं । ललकनि = उद्दाम इच्छा । पलक
न लाऊँ = थोड़ा भी विलंब न करूँ । अथवा पलक न मीनूं, किंतु एकटक लगाके देखा करूँ।
हैं उपजे रज-बोज ही ते बिनसे हू सबै छिति छार कै छाँड़े, एक-से देखु कछू न बिसेखु ज्यों एकै उन्हार, कुम्हार के भाँड़े; तापर ऊँच औ' नीच बिचारि बृथा बकि बाद बढ़ावत चाँड़े, बेदनि मूंद, कियो इन दूदु कि सूदु अपावन पावन पौड़े ॥६॥
मूढ़ कहैं मरि के फिरि पाइए ह्याँ जु लुटाइए भौन भरे को, ते खल खोइ खिस्यात खरे अवतार सुन्यो कहुँ छार परे को;
- देव कवि कहता है कि कोई दूसरा देवता नहीं है, केवल
राधिका के पैर पूजू गी, अथच उनको आँखों पर रख लाऊँगी, और इसमें पल-भर भी देर न करूँगी।
अनुहारि, एक ही तरह ।
$ वेदों को बंद करो, क्योंकि इन्होंने दुद मचाया है कि शूद्र अपावन है, और पाँड़े अर्थात् ब्राह्मण पवित्र हैं।