यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
देव-सुधा
१७५
 


काव्य-पुस्तकों के प्रकाशन में लगाना चाहता हूँ। पुस्तक रूप में इतनी ही संपत्ति मैं अपनी ओर से भी इसमें सम्मिलित करके एक पुस्तक- माला 'देव-सुकवि-सुधा' नाम से, ४,०००) के मूल-धन से, प्रकाशित करूँगा । देव-पुरस्कार की रकम से जो माला चलाई जाय, उसमें देव-शब्द संयुक्त होना तो ठीक है ही, सुधा-शब्द भी स्पष्ट कारणों से समीचीन है । आशा है, सहृदय साहित्य-संसार को भी यह नाम बहुत सार्थक-समुचित समझ पड़ेगा । अस्तु । इस पुस्तकावली का प्रबंध एक परिषद् द्वारा होगा, जिसमें अनेक सदस्य रहेंगे। इनका निर्वाचन बाद में हो जायगा। मेरी इच्छा है किश्रीमान् सवाई महेंद्र महाराजा साहब स्वयं इसके सभापति रहें, और मैं मंत्री के रूप में सेवा करूँ । आशा है, श्रीमान् मेरी यह सांजलि समभ्यर्थना स्वीकार करके मुझे इस संपत्ति को इस शुभ कार्य में लगाने का आदेश देंगे । समिति को या मुझे अधिकार होगा कि किसी सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था को यह सारी संपत्ति, जब समुचित समझे, समर्पित कर दे। टीकमगढ़ वसंत-पंचमी, १६६१, दुलारेलाल