जाति ( सुनारिन ) का वर्णन है। तावै–तपावै । बिधि-
सोनी ब्रह्मा-स्वर्णकार ने । अगोनी-ऐसी स्त्री, जो गौने नहीं गई
है । अगोनी अँगेठी को भी कहते हैं । प्रयोजन यह है कि अगोनी में
औरों का मन तपाती है।
ऍडिन ऊपर घूमत घाँघरो तैसिए सोहति सालू कि सारी ,
हाथ हरी-हरी छाजै छरी अरु जती चढ़ी पग फूंद फुदारी;
ऊँचे उरोज हरा घुघचीन के हाँ कहि हाँकति बैल निहारी ,
गात नहीं दिखराय बटोहिन बातन हीं बनिजै बनिजारी।।२६६।।
बनजारी-जाति की स्त्री का वर्णन है। सालू लाल कपड़े से
प्रयोजन है। बनिजै-खरीदती है । छाजै (छाजना)-शोभा
देती है।
सींची सुधा-बुंदन सों कुंदन की बेलि, किधौं
___ साँचे भरि काढ़ी रूप ओपनि भरति है;
पोखी पुखरागन बपुख नख सिख कर
. चरन अधर बिद्रुमन ज्यों धरति है।
हीरा-सी हँसनि मोती-मानिक-दसन स्वेत ,
____ स्यामता लसनि दृग हियरा हरति है;
जोबन जवाहिर सों जगमग होइ, जोह
___ जौहरी की जोइ जग जौहर करति है ॥ २६७।।
जौहरी की स्त्री का वर्णन है । उसी प्रकार रत्नों के कथन हैं । बपुख
( वपुष )-शरीर । बिद्रुमन प्रवालों = मूगों । श्यामता =
कालापन । यहाँ नीलम-मणि-रूपी आँखों की श्यामता से प्रयोजन
है। जोइ ( जाया )= स्त्री।
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