ज्यों बिन ही गुन अंक लिखै घुन यों करिकै करता कर मारयो, वारिए कोरि सची रति रानी इतो खतरानी को रूप निहार यो देव सुबानक देखि अचानक आनकहूँन को पान क मार यो , लाज लचै तिय पान रचै तौ पचै बिन काजबिरंचिबिचारयो । कोरि-कोटि-करोड़। देव दिखावति कंचन-सो तन औरन को मन तावे अगोनी, सुंदरि साँचे में दै भरि काढ़ी-सि आपने हाथ गढ़ी बिधि सोनी सोहति चूनरि म्याम किसोरी कि गोरी गुमान-भरी गज-गोनी, कुंदन लीक कसौटी में लेखीसि देखी सु नारि सुनारि सलोनी। ® जैसे विना अक्षर लिखने का ज्ञान रखते हुए भी घुन कभी- कभी काटते काटते कोई अक्षर बना जाता है (जिसे घुणाक्षर-न्याय कहते हैं ), उसी प्रकार अन्यों को बनाते-बनाते विना खतरानी-सी रूप- वती बनाने की शक्ति रखते हुए ब्रह्माजी अकस्मात् उसे बनाकर ऐसे प्रसन्न हुए कि आगे ऐसो रूप बना सकने में अपने को असमर्थ पाकर तथा उससे बुरा रूप बनाने में लज्जा बोध करके उन्होंने अपने हाथ ही झाड़ दिए ( वह निर्माण कार्य से निवृत्त हो गए )। + देव कवि कहता है कि ( ब्रह्मा ने) खतरानी की अच्छी बनक अकस्मात् देखकर लाए जानेवालों का श्रानना (लाना) बंद कर दिया (श्रागे से सृष्टि-रचना ही छोड़ दी, जिससे संसार में पैदा होनेवालों का पैदा होना नष्ट हो गया)।
- यदि बेचारा ब्रह्मा और स्त्री बनावे, तो वह लजा से झुक
जाय, अथच अनावश्यक कष्ट उठावे ( क्योंकि ख़तरानी के समान रूपवती उससे अन्य रामा बन ही नहीं सकेंगी)।