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भूमिका

ऊपर रूप अनूप अति, अंतर अंतक तूल । इंद्रायना के फल यथा करियारी के फूल ।। १४ ॥

ऊपर रूखो अतिहि फल, अंतर अति रस राखि । सुरुचि जीभ जौहर करत कौहर $फल मुख चाखि ॥ १५॥

कहत लहत उल हत हियो, सुनत चनत चित प्रीति । शब्द अर्थ भाषा सुरस बसत काब्य दस रीति ॥ १६ ॥

कबिता-कामिनि सुखद पद सुवरन सरस सुजाति । अलंकार पहिरे अधिक अदभुत रूप लखाति ॥ १७ ॥

अलंकार में मुख्य द्वै उपमा और स्वभाव । सकल अलंकारन बिषै परसत प्रगट प्रभाव ॥ १८॥

अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लच्छना लीन । अधम व्यंजना रस कुटिल, उलटी कहत नवीन ।। १६ ।।

दसा अवस्था हाव दस यद्यपि सकल तियानि । . तदपि रसिक क्रम ते कहत मुग्ध मध्य प्रौढ़ानि ॥२०॥

दसम अवस्था मूरछा कहूँ मरन है जात । नीग्स जानि न बरलिए कठिन करुन सुखघात ॥ २१॥

घिमल सुद्ध सिंगार-रस देव अकास अनंत । उड़ि-उड़ि खग ज्यौं और रस बिबस न पावत अंत ॥ २२ ॥

यमराज, मृत्यु।

  • .एक प्रकार का फल, जो देखने ही में अच्छा होता है ।
  • लाल रंग का फूल जो जहर होता है।

$ लाल रंग का फल ।