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१६४
देव-सुधा
 
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देव-सुधा

नख ते सिखा लौ सब स्याममई बाम भई, बाहर लौं भीतर न दूजो देव देखिए ; जोग करि मिलें जो बियोग होय बालम,जु ह्याँ न हरि होयँ तब ध्यान धरि देखिए ।।२५६।। सासन कै सासन को = श्वासों पर आज्ञा चलाकर, अर्थात् श्वासों को स्ववश करके । प्राणायाम पर उक्ति है। कुविजा कितेव दुबिजा के रहे श्राप देव, अस अवतारी अब तारी जिन गनिका आरति न राखत निवारत नरक ही ते , तारत तिलोक चरनोदक की कनिका । उनके गुनानुबाद तुमसों सुने हैं ऊधो , गोपिन को सूधो मत प्रेम की जवनिका; कुजन मैं टेरिहैं जू स्याम को सुमिरि नीके , __हाथ लै न फेरिहैं सुमिरिनी के मनिका ॥ २५७ ॥ कितेव = धूर्त; छल करनेवाले ( यह 'कितव'-शब्द से बना है)। दुबिजा = दुरग्गी, जारजा। कनिका = कण । जवनिका=नाटक का परदा । सुमिरिनी = छोटी माला । कंसरिपु अंस अवतारी जदुबंस कोई, कान्ह सों परमहस कहै तो कहा सरो; ® कैतव ( छल) करके दुरग्गी कुब्जा के यहाँ अंशावतारी स्वयं वह भगवान् अब रहे, जिन्होंने गणिका को तारा था।