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देव-सुधा
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तूरजके बजाय सूर सूरज को बेधि जाय,
____ ताहि कहा सबद सुनावत हौ डोड़ी को।
ऊधो पूरे पारखो हौ परखे बनाय देव .
वार ही पे बोरो पै रवैया धार औड़ो को;
मनु मनिका+दै हरि-होरा गाँठि बाँध्यो हम,
तिन्हैं तुम बनिज बतावत हो कौड़ो को ॥२५५॥
ऊधौ का वर्णन है । अंजन = काजल; अध्यात्म अर्थ में माया।
रंजित भूषित । परखे बनाय = भली भाँति परखे गए हो।
जौ न जीमैं प्रेम तब कीजै ब्रत-नेम, जब
कंज-मुख भूलै तब सजम बिसेखिए ;
आस नहीं पी की तब श्रासनx ही बाँधियत,
सासन कै सासन को पूँदि पति पेखिए ।
- तुरही।
+ जो सूर (युद्ध-वीर ) तुड़ही बजाकर सूर्य-मंडल को बेध जाता है (युद्ध में प्राण भी दे सकता है), उसे डौड़ी (ढिंढोरा) के शब्द से कैसे डराया जा सकता है, क्योंकि जब उसे मरण का भी भय नहीं, तब साधारण डौड़ी का भय क्या होगा ?
- इसी किनारे पर।
$ तिरछी, उलटी। + गुरिया, जवाहरात का टुकड़ा । x योग के ८४ आसन ।