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देव-सूधा
 

१६० देव-सुधा खोरि मैं खेलत पीठि दिए तऊ नेह कि डीठि छुटै नहिं छूटी, देव दुहूँ को दुहू छलु पायो सु कौलमुग्बी लखे नौल बधूटी ; क्यों विसरै निसरै मन ते ब्रजजीवन की निजु जीवन-बूटी, बाल के लाल लई चिहुँटी रिम के मिस लालसौं बाल चिहूँटी। ___ वर्तमान गुप्ता नायिका का वर्णन है। खोरि = छोटी गली । कौल = कमल । नौल = नवल; नवीन । ब्रजजीवन = व्रज के जीवन (कृष्ण)। चिहूँटी = चिपट गई। (२८) उद्धव-संवाद ऊधो आए ऊधो पाए, स्याम को सँदेसो लाए, सुनि गोपी-गोप धाए धीर न धरत हैं; चौरी लगि दौरी उठि भौंरी, लौं भ्रमति मति , गनति न ताऊ गुरु लोगनि डरति हैं। है गई बिकल बाल बालम-बियोग-भरी , जोग की सुनत बात गात यों जरत हैं; भारी भए भूषन सँभारे न परत अंग , आगे को धरत पग पाछे को परत हैं ॥२५२।। चौरी लगि = चबूतरे के पास । ताऊ = पिता का बड़ा भाई । ॐ कमल-वदनी नव-वधू के देखने से दंपति ने एक दूसरे का छल जान लिया।

  • मुरप करके।
  • भौंरी ( काठ का खेलवाला यंत्र ) के समान उनकी बुद्धियाँ

भ्रमती हैं । वे न तो ताऊ को गिनती हैं, न (अन्य ) गुरुजनों को डरती हैं।