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देव-सुधा
 

देव कहै लाख-लाख भाँति अभिलाष पूरि पी के उर उमगत प्रेम-रस पूर है । तेरो कल बोल कल भाषिनि ज्यों स्वाति-बंद, जहाँ जाइ परै, तहाँ तैसोई समूर है; ब्याल-मुख विष ज्यों, पियूष ज्यों पपीहा-मुख , ___ सीपी मुख मोती, कदली-मुख कपूर है ॥ २३५॥ कवि नायिका के मधुर भाषण तथा उसके गुणों का वर्णन करता है। छंद में उल्लेख अलंकार का अच्छा उदाहरण है। समूर = मूल = आदिकारण । जब ते कुअर कान्ह रावरी कलानिधान कान परी वाके कहूँ सुजस कहानी - सी; तब ही ते देव देखी देवता-सी हँसति-सी, खीझति-सी रीति-सी रूति रिस.नी-सी । छोही-सी छली-सी छीनि लीनी-सी छकी-सी छीन, जकी-सी टकी-सी लगी थकी थहरानी-सी; बीधी-सी बँधी-सी बिष-बूड़ी-सी बिमोहित-सी बैठी वह बकति बिलोकति बिकानी-सी ॥ २३६ ।। प्रेमोन्मत्ता नायिका के भावों का वर्णन है। खीझति = अँझलाती। छोही = अनुरागिनी । थहरानी = कंपित । टकी-सी = टकटकी-सी बाँधे है । समुच्चयालंकार है। उज्ज्वल उज्यारी-सी झलमलाति झीनी सारी, झाई-सी दिपति देह - दीपति बिसाल-सी3;