आदि के बहुत-से तारों का गुच्छा, जो कपड़ों या गहनों श्रादि में
शोभा बढ़ाने के लिये लटकाया जाता है।
केसरि सों उबटे सब अंग, बड़े मुकुतान सों माँग सँवारी,
चारु सुचंपक हार गरे, अरु ओछे उरोजन की छवि न्यारी;
हाथसों हाथ गहे कवि देवजू साथ तिहारे हौं प्राजु निहारी,
हाहा हमारी सौं साँचो कहौ वह कौन ही छोहरी छाबरवारी ।।
नायिका नायक को अन्य रमणी के साथ देखकर आक्षेप करती है ।
छीबर = एक प्रकार की चूनरी ।
काल्हि ही साँझ उड़यो कर माँझ ते देव खरो तबते उरसाल्या,
एक भली भई बाग तिहारे ही श्रीफल औ' कदली चढ़ि हाल्यो।
बंचकबिंबनि चंचु चुभावत कुंज के पिंजर मैं गहि घाल्यो,
हौं सुकहूँ नहिं गखि सकी सुकहूँसुन्यो तेंहीं परोसिनि पाल्यो।
नायिका नायक के विषय में शिकायत करते हुए कहती है कि
परोसिन ने नायक को शुक की तरह पाल लिया है, अर्थात् अपने
वश में कर लिया है।
श्रीफल = बिल्वफल, बेल, नारियल । बिंबनि = कुंदरू - फल ।
घाल्यो = डाल दिया। चंचु = चोंच । सुकहूँ = शुक (तोता ) को भी।
राधे कही है कि ते छमियो ब्रजनाथ जिते अपराध किए मैं ,
कानन तान न भूलत ना खिन आँखित रूप अनूप पिए मैं ;
श्रोछे हिये अपने दिन राति दयानिधि देव बसाय लिए मैं ,
होहीअसाधु बसी च कहूँ पल अाधु अगाधु तिहारे हिए मैं॥२२१।।
तान = अलापना । खिन = क्षण । असाधु = असाध्वी; बुरी।
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देव-सुधा
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