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देव-सुधा अंग - अंग आगि - ऐसे केसरि के नीर लागे, चीर लागे जरन अवीर लागे दहकन ।।२०।। अंतक - यमराज । सान-धरे सार = सान पर चढ़ा हुश्रा (तेज़ किया हुश्रा) लोहा। घनसार = कपूर । मृगमेद = कम्तूरी (मृगमद)। गॉसी = शस्त्रों के आगे का भाग। चहकन = लूका लगना। अरगजा 3D एक सुगंधित द्रव्य, जो केशर, चंदन, कपूर श्रादि को मिलाकर बनाया जाता है । चोवा = एक सुगंधित द्रव्य, जो कई सुगंधित वस्तुओं को मिलाकर, उसको जोश देकर रस टपकाने से बनता है। विशेषतया चंदन का बुरादा, देवदार का बुरोदा, मरसे के फूल, केशर और कस्तूरी इसके बनाने में पड़ते हैं। खोरि लौं खेलन प्रावती यै न तो आलिन के मत मैं परती क्यों, दव गुपालहि देखतो यै न तौ या बिरहानल में बरती क्यों ; माधुरी मंजुल अंब की बालि सुभालि-सी है उर मैं अरती क्यों , कोमल कूकि कै कोकिल कूर करेजनि को किरचैं करती क्यों । बरती = जलती। भालि-सी = बरछी की-सी। अरती = गड़ती। किरचें = टुकड़े। (२३) खंडिता देव जुपै चित चाहिए नाह तौ नेह निवाहिए देह मरयो परै, त्यों समुझाय सुझाइए राह अमारग जो पग धोखे धरयो परै; नीके मैं फीके हे आँसू भरौ कत ऊँची उसास मरो क्यों भरयो परै, रावरो रूप पियो अखियान भर यो सुभत्यो उबरयो सुढरयो परै। खंडिता नायिका नायक से कहती है-