आँसुन के सलिल सिरावती न छाती जो,
उसास लागि कामागि भसम हो तो हीततो;
केसरि कुसुम हू ते कोंरी जो न होती, तौ
किसोरी सों कुसुम-सर कौनी भाँति जीततो।
देवजू सराहिए हमारो न्याउ ह्याऊ करि,
नाहिंत अहित चेत करतो जु चीततो;
कोकिला के टेरत निकरि जातो जीव, जो
तिहारे गुन गनत उधेरत न बीततो॥२०४॥
सखी नायक को नायिका की विरह-दशा सुनाती है। उसास= दीर्घ श्वास। कामागि= कामाग्नि। कुसुम-सर= फूल के बाणवाला अर्थात् कामदेव। ह्याऊ= धैर्य। न्याउ= न्योय। चेत= चैत। चीततो= जो चिंतता। गुन गनत उधेरत= गुण गिनना और बिखेरना, अर्थात् स्मरण करना। उधेरना का शाब्दिक अर्थ उकेलना है। कोरी= साफ़।
कंत बिन बासर बसंत लागे अंतक-से,
तीर-ऐसे त्रिबिध समीर लागे लहकन;
सान-धरे सार-से चंदन घनसार लागे,
खेद लागे खरे* मृगमेद लागे महकन।
फाँसी-से फुलेल लागे गाँसी-से गुलाब अरु
गाज अरगजा लागे, चोवा लागे चहकन;
- चंदन घनसार (कपूर) सान-धरे लोहे-से लगे, तथा मृगमेद
के महकने से खरे खेद लगे (विशेष संताप हुआ)।