इस छंद में नायिका अपने प्रेमाधिक्य का कथन करती है।
दुहू विधि सोध = दोनो प्रकार (चित्त के भीतर-बाहर)का खोज । सोरकै = शोर करके । जुपै = यदि । हा! = विस्मय । करेरे = पैने । सटि जाइ न = चिपक न नाय, अर्थात् ऐसा छिप जाय कि खोजे न मिले । नटि जाइ न = नष्ट न हो जाय, चला न जाय । मोहि = मोहित होकर
रूप को रसिकु रसलंपटु परस लोभी
राग ही सौं रँग्यो बसै बासु लै अड़ाइतो ;
मारयो नहीं जातु बिनु मारे न डेरातु घरी
काम कर खोटे छोटे बड़े सों बड़ाइतो।।
होइ जो हमारो कोई हितू हितकारी यासों
कहै समुझाय देव कुमति छड़ाइतो;
मानै न अनेरो, मनु मेरो बहुतेरो कह्यो,
पूतु ज्यों कपूतु लरिकाई को लड़ाइतो ॥ १८२ ।।
तेरो कह्यो करि-रि जीव रह्यो जरि-जरि,
हारी पाँय परि-परि तऊ तें न की सँभार ;
ललन बिलोकि देव पल न लगाए तब,
यों कल न दीनी ते छलन उछलनहार ।
- अड़ियल, हठी (पाँचो इंद्रियों के सुखार्थ मचलनेवाला)।
+ छोटे और बड़े से अपने को बड़ा समझता है।
- अनियारा, अनोखा।
- हे मन ! तू छलने के लिये उछलता ( उत्तेजित होता) है।