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देव-सुधा

प्रेम - चरचा है अरचा है कुल नेम न

रचा है चित और अरचा हे चित चारी को

छोड्यो परलोक नर-लोक बर लोक कहा,

हरख न सोक ना अलोक नर-नारी को।

घाम सित मेह न बिचारै सुख देहहू को,

प्रीति ना सनेह डर बन ना अँध्यारी को;

भूनेहू न भोग, बड़ी बिपति बियोग-बिथा,

योगहू ते कठिन संयोग पर-नारी को ॥१६८।।

नायिका परकीया है। नेम न रचा है = नियमों से विरुद्ध है। अलोक आलोक, ज्योति।

प्रेम-गुन बाँधि चित चंगा सो चढ़ायो उन,

सुनि-सुनि बंसी-धुनि चंग मुहचंग की;

मधुर मृदंग सुर अरझि उतंग भई

रंग परबीन ऐसी बाजनि अभंग की।

  • (मति को छोड़कर ) चित्त पर चलनेवाले को केवल प्रेम

की चर्चा और अर्चा है, अथच कुल-नियम उसके लिये अरचा ( नहीं बना) है। चिरा किसी और अोर अनुरक्त नहीं है ।

+ पतंग।

  • तेज़ घुमानेवाला।

$ मुरचंग बाजा।