सनेह = प्रेम; स्निग्ध द्रव्य (तैलादि) से भी मतलब है ।
मृगम्मद = कस्तूरी । मखतूल = काला रेशम ।
कोऊ कहौ कुलटा, कुलीन - अकुलीन कहौ,
कोऊ कहौ रंकिनि कलंकिनि कुनारी हौं
कैसो परलोक, नरलोक बर लोकन में,
लीन्ही में अलोक लोक-लीकन ते न्यारी हौं ।
तनजाहि, मन जाहि, देव गुरुजन जाहि,
जीव किन जाहि टेक टरति न टारी हौं
वृंदाबनवारी बनवारी की मुकुटवारी,
पीत पटवारी वहि मूरति पै वारी हौं ।।१५३ ।।
नायिका के अगाध प्रेम का वर्णन है । बनवारी = चरणों तक की माला धारण करनेवाला ( बनमाली ), अर्थात् भगवान् बनवारी की वृदावनवाली, पीत पटवाली एवं मुकुटवाली मूर्ति पर नायिका न्योछावर है । अलीक = लोक- मर्यादा से भिन्न ।
खीझे दख पाऊँ हौं न रीझे सुख पाऊँ मेरे
खीझरीझ एकै मनु राग्यो सोई रागि चुक्यो
जस- अपजस, कुबड़ाई औ' बड़ाई, गुन-
औगुन न जाने जीव जाग्यो सोई जागि चुक्यो।
कौने काज गुरजन बरजैं जु दरजन,
कैसेऊ न नेम- प्रेम पाग्यो सोई पागि चुक्यो,
लोगनि लगायो सुतौ लागो अनलागो देव ,
पूरोपन लागो मनु लागो सोई लागि चुक्यो।। १५४॥