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देव-सुधा

नायिका की रोमावली का वर्णन है। चटक = एक पक्षी जिसको गौरैया कहते हैं । चरनाली = चरणों की पंक्ति। सारदा = सरस्वती । लंक = कटि । लंक लीनी रीति रंक की = कटि-प्रदेश रंक की दशा को प्राप्त हुआ; अर्थात् ( कटि ) क्षीण हो गई। उदार = इस वास्ते उदार है कि पापों को बाहर निकाले देता है। निरै = नरक । ततो पातक अतंक = पातकों के प्रताप का विस्तार । यहाँ कवि ने रोमराजी की श्याम रंग के कारण पाप से समता दी है। रंचक = थोड़ा। चित-बंचक = चित्त को ठगनेवाली । चित्त वृत्ति उसे देखकर बिगड़ती, सो मानो वह सदोष हो जाती है।

उज्जल कगेल अरुनाधर मधुर बोल , लोल चकचौंध सो अमंद मंद हास को;

चं कने चिबुक चारु नामिका मुहुत भारु , ललित लिलार बेंदी बंदन बिलास को।

कंचन किनारी भुमकारी मै करन-फूल , सीम-फून हीरा लाल मोतिन सास को;

देव ज्यों उदित इंदु-मंडल अखंड मुख- मंडन के पास पाम मंडल प्रकास को ।। १२८ ।।

नायिका के मुख-मंडल का वर्णन । अनाधर = लाल ओंठ । लोल = चंचल । उज्यास = प्रकाश । मैं = ( मय); सहित । झुमकारी मै करन-फूल = झुमकारी ( गुच्छा)-सहित कान में पहनने का गहना।

  • बिंदी और ईगुए उसमें विलास करते हैं, अर्थात् खेल-सा

करके प्रभा फैलाते हैं।